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रविवार, 3 जनवरी 2010

आज कुछ घरेलू नुस्खे

आयुर्वेद भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति है . न ही कोई हानी और अत्यंत लाभकारी . आयुर्वेद की रचना सवयम ब्रह्मा जी ने की उन्होंने ब्रह्म्साहित की रचना की लेकिन यह अब बजार में उपलब्ध नही है . चरक और च्यवन ऋषि ने आयुर्वेद में कई खोज की .

जीरा
 जीरा पाचक और सुगंधित मसाला है। भोजन में अरुचि, पेट फूलना, अपच आदि को दूर करने में जीरा विश्वसनीय औषधि है। भुने हुए जीरे को लगातार सूँघने से जुकाम की छीकें आना बंद हो जाती है। प्रसूति के पश्चात जीरे के सेवन से गर्भाशय की सफाई हो जाती है। जीरा गरम प्रकृति का होता है अत: इसके अधिक सेवन से उल्टी भी हो सकती है। जीरा कृमिनाशक है और ज्वरनिवारक भी। जीरे को उबाल कर उस पानी से स्नान करने से खुजली मिटती है। बवासीर में मिश्री के साथ सेवन करने से शांति मिलती है। जीरे व नमक को पीसकर घी व शहद में मिलाकर थोड़ा गर्म करके बिच्छू के डंक पर लगाने से विष उतर जाता है। जीरे का चूर्ण 4 से 6 ग्राम दही में मिलाकर खाने से अतिसार मिटता है।

अदरक

 अदरक का सूखा हुआ रूप सौंठ होता है। इस सौंठ को पीस कर पानी में खूब देर तक उबालें। जब एक चौथाई रह जाए तो इसका सेवन गुनगुना होने पर दिन में तीन बार करें। तुरंत फायदा होगा। काली मिर्च, हरड़े का चूर्ण, अडूसा तथा पिप्पली का काढ़ा बना कर दिन में दो बार लेने से खाँसी दूर होती है। हींग, काली मिर्च और नागरमोथा को पीसकर गुड़ के साथ मिलाकर गोलियाँ बना लें। प्रतिदिन भोजन के बाद दो गोलियों का सेवन करें। खाँसी दूर होगी। कफ खुलेगा। पानी में नमक, हल्द‍ी, लौंग और तुलसी पत्ते उबालें। इस पानी को छानकर रात को सोते समय गुनगुना पिएँ। सुबह खाँसी में असर दिखाई देगा। नियमित सेवन से 7 दिनों के अंदर खाँसी का नामोनिशान नहीं रहेगा।



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1 टिप्पणी:

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