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मंगलवार, 11 मई 2010

हिन्दू विवाह एक्ट में बदलाव जरूरी

आज कल हिन्दू विवाह को लेकर मीडिया में बहस छिड रही है लेकिन क्या वाकई इस क़ानून  में बदलाव की जरूरत है . हमारे शास्त्रों में वर्णित है माँ . नानी , और परनानी का गोत्र छोड़ा जाना और पिता का गोत्र . लेकिन अंग्रेजो के बनाये क़ानून इनका विरोध करते थे वही क़ानून आज तक चले आ रहे है . और मीडिया भी इन बातो प़र घंटो बहस कर इसे दकियानूसी बाते बता रहा है .  लेकिन हिन्दू समुदाय इन संस्कारों को भुला नही है और भुल  भी नही सकता . क्या नई चीज़ के नाम प़र भाई - बहन का विवाह जायज है . जिस प्रकार से अंग्रेजो ने हिन्दुओ के रीती - रिवाजों प़र प्रहार किया था वही प्रहार आज का मीडिया कर रहा है और नई पीढ़ी को बरगलाने का कार्य कर रहा है . जब भारत का बहुसंख्यक वर्ग एक गोत्र में विवाह नही करना चाहता फिर क्यों इस तरह की बहस कर और मुद्दे को उछाल कर हिन्दुओ को अपमानित किया जाता है . क्या मीडिया अंग्रेजो की लीक प़र नही चल रहा है . खाप - पंचायतो की जायज मांग को भी पुराने ख्यालात बताया जाता है और नये के नाम प़र हर पश्चिमी गलत चीज़ हम प़र थोप  दी जाती है . और भारतीय समाज इन सब बातो का खुलकर विरोध भी नही करता . एसा ही लिव इन रिलेशनशिप क़ानून   में हुआ.  मीडिया क्या चाहता है जो भी पश्चिमी देशो में चल रहा है वही ईस देश में भी चले . और हिन्दुओ की आस्था तार - तार होती रहे . सदियों से जिस गलत विचारों और गलत सभ्यता में कुछ देश चल रहे हम भी उन्ही के क़ानून अनुसार चले . यह बाते सिद्ध करती है की आज भी राज अंग्रेजो का ही है वह जो चाहते है वह इस देश प़र थोप देते है और हिन्दू बेचारा घर बैठ कर मन को मसोस कर बैठ जाता है . पता नही हमारे सांसद और सरकार , बुद्धिजीवी भी इन लोगो प़र लगाम क्यों नही कसते . जब की यह रीती- रिवाज ऋषि मुनियों के गहरे अनुभवो और रिसर्च के बाद बने है  क्या इस  तरह से मीडिया किसी और धर्म को कटघरे में खड़ा कर सकता है अथवा हिदुओ की ही सहनशीलता का गलत फायदा उठाया  जाता रहेगा .

7 टिप्‍पणियां:

  1. हिन्दू विवाह अधिनियम में परंपरा को स्थान दिया गया है और यह अधिनियम अंग्रेजों के भारत छोड़ देने के आठ वर्ष बाद संसद में पारित हुआ था। इस के पहले अंग्रेजी शासन में विवाह के मामलों में परंपरागत विधि को ही महत्व दिया जाता था।

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  2. क्या नई चीज़ के नाम प़र भाई - बहन का विवाह जायज है.yah to jaayej nahi hai. lekin yadi hindu samaaj me koi bhai apni sagi bahan ke saath balatkaar kare to hindu samaj ko kya karana chahiy.?maine hindu samaj ko najadik se dekha hai. bhram me naa rahe. mediya in baaton ko dakiyanusi bataakar sahi kar rahi hai./ hindu samaj mar chuka hai.

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  3. suresh ji
    jo is tarah ki ghtiya harkat kartaa hai vah hindu nhi ho sakta kyo ki hindu sanskaro se hua jaataa hai n ki matr janm se or is tarah ke kuchek shararti tav har samprdaay me hote hai lekin hindu samudaay in sab baato kaa aaj bhi virodh kartaa hai

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  4. आप कानून बदलने की बात कर रहे हैं. लेकिन किसका कौनसा गोत्र है ये कोई कैसे सिद्ध करेगा ? प्रमाण पात्र कौन देगा ? अगर कोई दुसरे शहर में जाकर अपना गोत्र दूसरा बताकर सगोत्रीय लडकी से विवाह कर लेगा तो कैसे पाता चलेगा? सबसे पहले तो यह हो की हिन्दू समाज में जागृति लाई जाए. युवासों को यह विस्तार से बताया जाए की इससे क्या क्या नुकसान हैं. ऐसा क्यूँ नहीं होना चाहिये. आदि आदि
    हमारे देश में कानून हजारों है लेकिन फिर भी अराजकता है. अगर इंसान स्वयं जागरूक हो तो कानून ना हो तो भी समाज सभी रहता है. लेकिन अगर लोग जागरूक नहीं है तो चाहे कितने ही कानून बना लो समाज सुधार संभव नहीं है.

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  5. @नरेश चन्द्र बोहरा जी, आप खाम-खा परेशां न होइए, ऐसा है कि इस गोत्र नामक आस्था या रिवाज का जहां महत्व है, वहां पूरे गाँव को ही मालूम होता है कि उनका क्या गोत्र है, अथवा जहां इसे माना जता है वहाँ अज भी घरों में सदस्यों की जन्मपत्रियाँ होती है , जिसमे गोत्र वर्णित रहता है ! और जिनको अपना गोत्र पता ही नहीं , या दूर दराज शहरों में रह रहे है , उन्हें इस बाबत जानने की जरुरत हे क्या है, बिना जाने भी तो वे लोग शादियाँ कर रहे है ! लेकिन जहां एक ही गाँव , कुल की लड़के लडकिया ( जिन्हें में एक नंबर का बुजदिल और कायर मानता हूँ क्योंकि अगर ये हिम्मत वाले होते तो दुसरे के गाँव में घुसकर वहाँ की लडकी/ लड़का पटाते अपने लिए ) संबंधों, हालात और मौके का फायदा उठाते है , जरुरत इस क़ानून की वहां है !

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  6. हम जितना जानते हैं उसके अनुसार गोत्र गांव के जीबन का आधार है इसके साथ छेड़-छाड़ ठीक नहीं ।

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