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सोमवार, 9 जनवरी 2012

हरयाणा में बीजेपी की स्थिति कैसे ठीक हो

राष्ट्रीय पार्टी का दावा करने वाली भाजपा क्यों हरयाणा में दहाई का आकड़ा भी नही छु पाती क्यों बार -बार इसे किसी साथी की तलाश रहती  है इन सभी बातो का जवाब तलाशेंगे हम अपने इस लेख में .

जातीय सम्मिकर्ण में कमजोर - इस बात में  कोई दो राय नही है की हरयाणा  चुनाव में जीत जातीय सम्मिक्र्ण तय करते है कोंग्रेस और इनेलो दोनों ही पार्टिया जाटो पर टिकी है और सत्ता सुख भी जाट वोटरों के सहारे भोगती आई है वही पुराने कोंग्रेसी भजनलाल नॉन जाट नेता रहे है इसी परम्परा पर चलकर कुलदीप ने भी नॉन जाटो को रिझाया है एसे में अब सवाल है की बीजेपी कहा है है और क्या कर रही है .भाजपा की पकड अब तक न तो जाटो में मजबूत है और न ही दलितों में ....३० % पंजाबियों को लेकर और ब्राह्मण बनिया को लेकर बीजेपी एक मजबूत स्थिति मे. आ सकती है लेकिन वह एसा नही कर रही और विफलता उसका हर चुनाव में साथ नही छोडती .
व्यापारियों के मुद्दे न उठाना - बेशक से भाजपा पर व्यापारियों की पार्टी होने के आरोप लगे लेकिन हरयाणा में यह पार्टी व्यापारियों को भी साथ नही ले पा रही है हांसी ,हिसार ,गुडगाव में जब व्यापरियों के साथ  कुछ घटनाएं हुई तब भी यह पार्टी खुद को व्यापारियों का हमदर्द साबित नही कर पायी . एसे में ओम परकाश चोटाला ने इन सभी घटनाओं मुद्दों को उठाया और ओमपर्काश चोटाला समय समय पर व्यापरी सम्मलेन भी कर रहे है और साथ ही साथ पंजाबी वोटरों को लुभाने के लिए उनके पास अध्यक्ष पद पर अशोक अरोड़ा भी है जिनकी धीरे धीरे ही सही पंजाबियों में पैठ बढ़ रही है . भाजपा ने पंजाबियों को अपने पक्ष में लेने का बेहतरीन मोका तब अपनी हाथ से निकाल दिया जब अखिल भारतीय पंचनद समिति जिसके पंजाब केसरी के सम्पादक अश्विनी कुमार अध्यक्ष है को सार्वजनिक रूप से अपना समर्थन नही दिया भाजपा पंजाबियों का समर्थन अब भी पा सकती है यदि वह अखिल भारतीय पंचनद समिति की कुछेक मांगे मान ले और पंजाबियों को उनका जायज हक़ देने का समर्थन करे.


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